Friday, May 22, 2020

भूली-बिसरी यादे

आइए कुछ भूली-बिसरी यादों को याद करें...अतीत के कुछ पन्ने पलटें..!!
हम सबकी कहानी आपके दोस्त स्वप्निल की जुबानी 


पांचवीं तक स्लेट को जीभ से चाटकर कैल्शियम की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी लेकिन इसमें पापबोध भी था कि कहीं विद्यामाता नाराज न हो जायें इसलिए कई दफा गुरु जी से पानी पीने की छुट्टी मांगकर स्लेट को नल के नीचे धो लाते थे।
तो कभी पानी पीकर थोड़ा सा पानी हाथ में लेकर आते और और जब वो भी हाथ मे नही ठहरता तब वही गीला हाथ स्लेट पर छिड़कते और उसी गीली हथेली से स्लेट पोछ लेते थे।
पढ़ाई का तनाव हमने पेन्सिल का पिछला हिस्सा और पेन का ढक्कन चबाकर मिटाया था।
"पुस्तक के बीच विद्या , पौधे की पत्ती और मोरपंख रखने से हम होशियार हो जाएंगे ऐसा हमारा दृढ विश्वास था"।
कपड़े और बोरी के थैले में किताब कॉपियां जमाने का विन्यास और दोनों ओर कॉपी जमाने के बाद बीच में बचे गैप में कंपास ठूसना हमारा रचनात्मक कौशल था ।
हर साल जब नई कक्षा के बस्ते बंधते तब कॉपी किताबों पर जिल्द (पुट्ठा) चढ़ाना हमारे जीवन का वार्षिक उत्सव था।
माता-पिता को हमारी पढ़ाई की कोई फ़िक्र नहीं थी,
न हमारी पढ़ाई उनकी जेब पर बोझ थी । 
सालों साल बीत जाते पर माता पिता के कदम हमारे स्कूल में न पड़ते थे ।
एक दोस्त को साईकिल के डंडे पर और दूसरे को पीछे कैरियर पर बिठा हमने कितने रास्ते नापें हैं। स्कूल से दी गई 15 अगस्त और 26 जनवरी की सूचना पंजी में अल-सुबह 2 छात्र गांव के गणमान्य लोगों के हस्ताक्षर करवाने मानो ऐसे सीना चौड़ा करके निकलते जैसे हमें बहुत बड़ा संवैधानिक काम या फिर नौकरी ही मिल गई हो।
अभिमान शब्द से अनभिज्ञ थे बस शिक्षक कोई व्यक्तिगत कार्य सौंप दे तो उसे भलीभांति करके ही खुद को अभिमानी समझते थे।
यह सब...अब याद नहीं बस कुछ धुंधली सी स्मृतियां हैं ।
स्कूल में पिटते हुए और मुर्गा बनते हमारा ईगो (अभिमान) हमें कभी परेशान नहीं करता था , दरअसल हम जानते ही नही थे कि ईगो (अभिमान) होता क्या है ? हाथ और पैरों की सॉफ्टनेस क्या होती है इससे दूर-दूर तक कोई सरोकार नही था , स्कूल जाते वक़्त और 2 बजे की छुट्टी में जब घर खाना खाते और जो सरसों तेल हाथ-पैरों में चिपडते उससे जो सॉफ्टनेस हाथ पैरों में आती वही हमारे लिए शॉफ्टन्स थी😝
पिटाई हमारे दैनिक जीवन की सहज प्रक्रिया थी ,
"पीटने वाला और पिटने 
वाला दोनो खुश थे" , 
पिटने वाला इसलिए कि कम पिटे , पीटने वाला इसलिए खुश कि हाथ साफ़ हुवा।
हम अपने माता पिता को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना प्यार करते हैं,क्योंकि हमें "आई लव यू मॉम और आई लव यू डैड" कहना नहीं आता था।
आज हम गिरते - सम्भलते , संघर्ष करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं , कुछ मंजिल पा गये हैं तो कुछ न जाने कहां खो गए हैं।
हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है , हमे हकीकतों ने पाला है , हम सच की दुनियां में थे।
कपड़ों को सिलवटों से बचाए रखना और तो और कुछ दोस्त ऐसे भी होते थे जिनके कपड़ों में प्रेस (ईस्त्री) 14 अगस्त और 25 जनवरी की रात में ही लगती थी।
 रिश्तों को औपचारिकता से बनाए रखना हमें कभी नहीं आया इस मामले में हम सदा मूर्ख ही रहे।
हम अच्छे थे या बुरे थे शायद नही पता, पर हम सब एक साथ थे, काश वो समय वो बचपन फिर से लौट आए।

आशा है आपको बचपन में या अतीत की यादों में एक पल के लिए समा जाना बेहद अच्छा लगा होगा।🙏

             सौजन्य से....🖋️
         स्वप्निल भुतांगे (8085785740)

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